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आपराधिक कानून

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सोच-समझकर निर्णय लेने में सक्षम लड़की से बलात्कार का मामला रद्द कर दिया

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 20-Jul-2023

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कैलाश शर्मा बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य के मामले में बलात्कार के मामले को रद्द कर दिया है और माना है कि 17 या 18 वर्ष की आयु वर्ग का एक किशोर अपनी भलाई के बारे में सोच-समझकर "सचेत निर्णय लेने में सक्षम होगा"।

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2022 में बारहवीं कक्षा की 17 साल और 10 महीने की छात्रा ने 30 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज कराया था, जिसने उसकी अश्लील तस्वीरें वायरल करने की धमकी देकर और शादी का झूठा वादा करके यौन संबंध बनाया था।
  • भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376, 506 के साथ-साथ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 3, 4 के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिये आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की गई थी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • न्यायमूर्ति दीपक कुमार अग्रवाल ने कहा कि न्यायालय उस आयु वर्ग के एक किशोर के शारीरिक और मानसिक विकास पर गौर कर रहा है और न्यायालय इसे तर्कसंगत मानेगा कि ऐसा व्यक्ति अपनी भलाई के संबंध में सचेत निर्णय लेने में सक्षम है । प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि इसमें कोई आपराधिक मन:स्थिति (mens rea) शामिल नहीं है।
  • न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए विजयलक्ष्मी और अन्य बनाम  पुलिस निरीक्षक, समस्त महिला थाना (2021) राज्य प्रतिनिधि का आश्रय लिया।
  • इस मामले में, मद्रास उच्च न्यायालय ने माना कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) रोमांटिक रिश्तों में किशोरों से जुड़े मामलों को अपने दायरे में लाने का इरादा नहीं रखता है।

कानूनी प्रावधान

भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376

  • धारा 376 बलात्कार के लिए सज़ा का प्रावधान करती है।
  • बलात्कार करने की सज़ा दस साल का कठोर कारावास है जिसे आजीवन कारावास और जुर्माने तक बढ़ाया जा सकता है।
  • आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध गैर-जमानती और संज्ञेय है।
  • आपराधिक संशोधन अधिनियम, 2018 के आधार पर धारा 376 में निम्नलिखित संशोधन कियर गये:
    • किसी महिला से बलात्कार के लिए न्यूनतम सज़ा 7 साल से बढ़ाकर 10 साल कर दी गयी।
    • 16 साल से कम उम्र की लड़की से बलात्कार के लिए न्यूनतम 20 साल की सजा होगी, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।
    • इसमें धारा 376AB जोड़ी गई, जिसमें कहा गया है कि 12 साल से कम उम्र की लड़की का बलात्कार करने पर न्यूनतम 20 साल की सज़ा होगी, जिसे आजीवन कारावास या मौत की सज़ा तक बढ़ाया जा सकता है।
    • इसमें धारा 376DA जोड़ी गई, जिसमें कहा गया है कि 16 साल से कम उम्र की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के मामले में सजा आजीवन कारावास होगी।
    • धारा 376DB में कहा गया है कि 12 साल से कम उम्र की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के मामले में सजा आजीवन कारावास या मौत होगी।
  • भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करती है और इसमें किसी महिला के साथ बिना सहमति के संभोग से जुड़े सभी प्रकार के यौन हमले शामिल करती है।
  • हालाँकि, यह प्रावधान दो अपवाद भी बताता है:
    • वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के अलावा, इसमें उल्लेख किया गया है कि चिकित्सा प्रक्रियाओं या हस्तक्षेपों को बलात्कार नहीं माना जाएगा।
    • भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 में कहा गया है कि "किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध, और यदि पत्नी पंद्रह वर्ष से कम उम्र की न हो, बलात्कार नहीं है"।

भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 506 (Section 506 of Indian Penal Code, 1860)

  • भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 506 आपराधिक धमकी/अभित्रास (Criminal intimidation) के अपराध के लिए सजा निर्धारित करती है।
  • इसमें कहा गया है कि जो कोई भी आपराधिक धमकी/अभित्रास (Criminal intimidation) का अपराध करेगा, उसे दो साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।
  • आपराधिक धमकी/अभित्रास (Criminal intimidation) को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 503 में परिभाषित एक अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को उसके व्यक्ति, प्रतिष्ठा या संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए खतरे में डालता है या धमकी देता है ताकि दूसरे व्यक्ति को वह कार्य करने के लिए मजबूर किया जा सके जो कानूनकी नज़रों में दंडनीय होगा।

आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482

आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 किसी भी अदालत की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने या न्याय के उद्देश्य को सुरक्षित करने के लिए उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों को संरक्षित करती है। यह प्रावधान नई शक्तियाँ प्रदान नहीं करता है।

पॉक्सो अधिनियम, 2012 (POCSO Act, 2012)

  • यह अधिनियम 2012 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत पारित किया गया था।
  • यह बच्चों को यौन उत्पीड़न, यौन हमले और अश्लील साहित्य सहित अन्य अपराधों से बचाने के लिए बनाया गया एक व्यापक कानून है।
  • यह लैंगिक रूप से तटस्थ अधिनियम है और बच्चों के कल्याण को सर्वोपरि महत्व का विषय मानता है।
  • इस अधिनियम की धारा 3 प्रवेशन यौन हमले से संबंधित है और धारा 4 प्रवेशन यौन हमले के लिये सजा निर्धारित करती है।

धारा 3 पॉक्सो एक्ट -प्रवेशन लैंगिक हमला-

कोई व्यक्ति, “प्रवेशन लैंगिक हमला” करता है, यह कहा जाता है, यदि वह –

(क) अपना लिंग, किसी भी सीमा तक किसी बच्चे की योनि, मुख, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश करता है या बच्चे से उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है; या

(ख) किसी वस्तु या शरीर के किसी ऐसे भाग को, जो लिंग नहीं है, किसी सीमा तक बच्चे की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में घुसेड़ता है या बच्चे से उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है; या

(ग) बच्चे के शरीर के किसी भाग के साथ ऐसा अभिचालन करता है जिससे वह बच्चे की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा या शरीर के किसी भाग में प्रवेश कर सके या बच्चे से उसके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करवाता है; या

(घ) बच्चे के लिंग, योनि, गुदा या मूत्रमार्ग पर अपना मुख लगाता है या ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति के साथ बच्चे से ऐसा करवाता है।

धारा 4 - प्रवेशन यौन हमले के लिए सजा -

जो कोई प्रवेशन लैंगिक हमला करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।